Chand Shayari Gulzar
चिराग को बुझते हुए देखा है, हवा के आँचल में बैठे देखा है,
नज़्म को आबाद होते, मुझे घूर के देखा है।
उदास अपनी नज़्म देखी है, राज़ जिस नज़्म से खोलते थे दिल का,
उस छोटी से नज़्म को कहते हुए सुना है,
कि बादल जो बिखरे तेरी ज़िन्दगी में उसका मिज़ाज़ मुझे सुना दे।
जब वो तकलीफ दे रही थी, एक ज़िन्दगी नीले पानी में उतर रही थी,
अनकहे लफ्ज़ गूंज रहे थे, राह आँसू झलका रही थी।
जगाया उसे नाम से, धीरे से पलके उठाई उसने, ज़मीन पे देखा उसने हलके से सवाल करते हुए, कि नशा क्या है, नज़्म का इलाज क्या है,
उदास क्यों है तू, मुझे सुना दे, वो नज़्म मेरी अलग मिज़ाज से।
खींच के तोड़ ली निगाह उसने जैसे जैसे पत्थर गिरा हो जेहन में मेरे,
कहानी के सिरे बिखरे, मिट्टी चटक गई, कि छू के भी न निकले हम।
Gulzar ka andaaz- तेरी रूह न देखी, पर तेरे जाने के बाद लिखा है कलम से गम मेरा (Rakashas)
कोहरा था गर्मी में उलझा हुआ आफत में,
धुआं देखा था कोहरे के सर्दी की गर्माहत में,
तेरी खुशबू शबनम हुई थी, रुक्सद हुए चाँद को कोहरे में देखा है।
बता दिया उस वक़्त कहाँ था तेरा एहसास,
घबरा कर कहाँ चुप था तेरा एहसास,
डूबा था उलझ हुआ, शरमाया हुआ,
एहसास दूर था जैसे वादियाँ उदास हो।
उम्मीद के टुकड़े हुए, हाथों से धोते हैं टुकड़े,
रिश्ते लिबाज़ हुए, ज़िन्दगी से ना कोई आस हुई,
एक करवट हुई फरमाइश पे,
चलता है दिन अब तेरी ख्वाइश पे।